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लेखनी कहानी -11-Sep-2022 सौतेला

भाग 29 
पिंकी घर आ तो गई पर उसका दिमाग "कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है" में अटका हुआ था । पाने को पूरा जहां था और खोने को ? दिमाग में भांति भांति के विचार आने लगे थे उसके । बड़े लोगों में तो ये चरित्र वरित्र कुछ होता ही नहीं है । अगर वे इस चरित्र पर ही अटके रहते तो फिर वे बड़े कैसे बनते ? "मी ठू अभियान" में कितनी औरतों ने तीस तीस साल बाद खुलासे किये कि उनके साथ ऐसा हुआ था वैसा हुआ था । किस किस "बड़ी हस्ती" ने उसके साथ क्या क्या किया था ? पर जब उसके साथ वैसा हो रहा था तब उसने उसे मना क्यों नहीं किया ? उसके खिलाफ तभी पुलिस रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज करवाई गई ? इसका अर्थ यह हुआ कि तब उस औरत के साथ जो कुछ भी हुआ उसमें उसकी सहमति थी । तब तो उसे आगे बढना था इसलिए उसने अपने शरीर को सीढी बनाकर इस्तेमाल हो जाने दिया । चूंकि अब वह जो कुछ बनना चाहती थी वह बन चुकी थी और उम्र के उस पड़ाव में पहुंच गई थी जहां यह शरीर भी उसे और आगे बढ़ाने में सहायक नहीं हो सकता है, इसलिए वह बस एक ट्वीट करके किसी पर लांछन लगा रही थी । आज भी उसमें पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं है क्योंकि उसे पता है कि वह अपने आरोपों को सिद्ध नहीं कर पायेगी।  किन्तु एक ट्वीट से वह सुर्खियों में बनी रहेगी और लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर लेगी । आम के आम और गुठलियों के दाम इसी को तो कहते हैं । काम भी निकल गया और अगले की मिट्टी पलीत भी कर दी । इसे कांइयापना कहते हैं । 

जब उनके शरीर का कोई और व्यक्ति उपयोग कर रहा था तो इससे उसे फर्क क्या पड़ा ? कुछ घिस गया था क्या उसका ? ये नैतिकता नाम की चीज तो केवल मिडिल क्लास की औरतों के लिए ही एक "कवच" का कार्य करती है । जिस प्रकार एक ताला साहूकारों के लिए लगाया जाता है न कि चोरों के लिए । उसी तरह नैतिकता भी एक "सुरक्षा कवच" पहनने के लिए ओढी जाती है । पुरुषों पर नैतिकता के नियम लागू नहीं होते हैं ।  पुरुष अगर अनैतिक हो जाए तो कोई बात नहीं मगर एक औरत को तो नैतिक बने ही रहना चाहिए । ये कौन सा सिद्धांत है ? पुरुषों के लिए मानदंड अलग और औरतों के लिए मानदंड अलग । ऐसा क्यों ? आज राजनीति या बॉलीवुड में जिन पुरुषों को "औरतखोर" माना जाता है , क्या समाज में उनकी प्रतिष्ठा कम हुई है ? बिल्कुल नहीं । बल्कि उनकी "ख्याति" और बढ़ गई है । संजय दत्त खुद कहता है कि वह अब तक 365 औरतों के साथ सो चुका है तो क्या वह बदनाम हो गया ? बल्कि उसने तो उन औरतों का रास्ता खोल दिया जिन्हें पता नहीं था कि संजय दत्त सबके लिए "उपलब्ध" है । फिर वह तो केवल सी एम साहब के ही तो काम आएगी । बहती गंगा में यदि सी एम साहब भी डुबकी लगा लेंगे तो क्या फर्क पड़ जाएगा ? और इसका तो शिवम को पता भी नहीं चलने देगी वह । फिर हिचकिचाहट क्यों ? शायद पुराने संस्कार हैं जो इस रास्ते पर जाने से रोक रहे हैं उसे । पहले इन्हें खत्म करना जरूरी है । 

ऐसा सोचते ही उसने सबसे पहले घर से भगवान की मूर्ति हटा दी और एक मांगने वाले व्यक्ति को दे दी । गलत रास्ते पर चलने वाले लोग सबसे पहले अपने घर से भगवान को बिदा करते हैं । पिंकी ने अपना पहला कदम उस दिशा में रख दिया था । 

वह अपनी उधेड़बुन में मगन थी । उसे पता ही नहीं चला कि शिवम कब घर आ गया है । शिवम ने उसे पीछे से कमर में हाथ डालकर अपने से सटा लिया , तब उसे पता चला । 
"किस सोच में डूबी हुई हो जान ? चेहरा क्यों कुम्हलाया हुआ है तुम्हारा" ? शिवम ने पूछा 

पिंकी को पता ही नहीं था कि उसका चेहरा उतरा हुआ है । उसने नकारते हुए कहा "नहीं तो । मेरा चेहरा क्यों उतरेगा ? हां, मैं अभी बाहर से आई हूं ना शायद उसका असर हो" । बात संभालने की अच्छी कोशिश की थी उसने । 
"ये हो सकता है । पर तुम गई कहां थीं" ? 

इस सवाल पर पिंकी अचकचा गई । वह रिम्पी के बारे में बताना नहीं चाहती थी इसलिए उसे और कोई बहाना बनाना पड़ा "थोड़ा घर का सामान लेने चली गई थी" । 
"मत लाया करो ना । आखिर हम जैसे गुलाम कब काम आऐंगे" ? शिवम ने उसे बांहों में भरकर उस पर चुंबनों की बौछार सी कर दी । 
"छोड़ो मुझे । जब देखो तब गीला करते रहते हो । ऑफिस में यही सोचते रहते हो क्या कि घर पर जाकर कहां कहां किस करना है" ? इस बार पिंकी ने जरा मुस्कुराते हुए तिरछी निगाहें करके कहा 
"सच में जान, यही सोचता रहता हूं । तुमने कैसे जाना" ? 
"तुम्हारे लक्षणों से और कैसे ? जब देखो तब भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ते हो । जरा सा भी सब्र नहीं है तुममें" । पिंकी उलाहना देते हुए बोली 
"एक बात कहूं पिंकी , तुम्हें देखकर मैं अपना आपा खो देता हूं । पता नहीं क्या जादू कर रखा है तुमने कि मैं हरदम बेचैन सा रहता हूं" । शिवम उसे बांहों में कसकर बोला । 

पिंकी उसकी मजबूत बांहों में बड़ा आनंद प्राप्त कर रही थी मगर उसने झूठमूठ का नाटक करते हुए कहा "छोड़ो मुझे । अभी मुझे खाना बनाना है । इस सबके लिए तो पूरी रात पड़ी हुई है ना" । वह छिटक कर शिवम से अलग हो गई । 
"अरे सुनो तो ! कहां चलीं ? ऐसे क्यों सताती हो" ? शिवम के स्वर में याचना थी । 

इससे पहले कि शिवम उसे पकड़े , वह किचन में भाग गई  और खाने की तैयारी करने लग गई । शिवम उसके पीछे पीछे किचन में चला आया मगर पिंकी ने बेलन उठा लिया और बोली "खबरदार जो एक कदम भी आगे बढाया तो ? कूटकर रख दूंगी" हंसते हुए पिंकी बोली । 
"तो कूटकर रख दो ना ? मैं तो कुटना ही चाहता हूं । कितने दिन हो गये तुम्हारे हाथ से कुटे हुए । चलो, आज वह शुभ दिन आ गया लगता है" । शिवम के चेहरे पर प्रसन्नता दौड़ रही थी । 
"आप तो बच्चों से भी ज्यादा शैतान हैं । प्लीज , मुझे काम करने दीजिए न । देखो कितनी देर हो गई है । मान जाओ ना, प्लीज" । पिंकी हाथ जोड़कर बोली । 

शिवम पीछे हट गया । उसे पिंकी को सताने में बड़ा आनंद आता था इसलिए वह उसे खूब सताता था । शिवम ने अपनी जेब से एक पिक्चर की दो टिकिट निकाली और उन्हें पिंकी को देकर बोला "आज खाना खाकर पिक्चर देखने चलेंगे" । शिवम ने फरमान सुना दिया । 
"कौन सी पिक्चर देखने चलेंगे" ? पिंकी खुश होते हुए बोली 
"साजन चले ससुराल" शिवम चहकते हुए बोला । 
"अरे, यह तो चीं चीं की पिक्चर है । गोविन्दा की फिल्में मुझे बहुत अच्छी लगती हैं । पूरी फिल्म में हंसाता ही रहता है गोविन्दा । बड़  हलकी फुलकी फिल्म होती है उसकी । लो, जल्दी से खाना वाना खा पी लो । और टाइम से ही चलना । मुझे फिल्म निकल जाने पर बहुत बुरा लगता है" । 
"टाइम से ही चलेंगे डार्लिंग, चिंता मत करो" । शिवम खाना खाने बैठ गया । 

क्रमश : 
श्री हरि 
29.5.23 

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1 Comments

Abhilasha Deshpande

29-Jun-2023 08:19 PM

Very nice

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